“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।”यह पंक्ति सूरज तिवारी के जीवन का सार है, जो यूपीएससी सीएसई 2022 परीक्षा में 917वीं रैंक हासिल करने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के निवासी सूरज की कहानी एक बड़े रेल दुर्घटना से शुरू होती है, जिसने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। इस दुर्घटना में उन्होंने अपने लगभग सभी अंगों को खो दिया, लेकिन उनकी दृढ़ता और संघर्ष ने उन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

युवावस्था और प्रारंभिक शिक्षा
सूरज तिवारी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गांव कोरावली में 8वीं कक्षा तक की। इसके बाद, उन्होंने मैनपुरी जिले में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। हालांकि, सूरज की पढ़ाई में कई बाधाएं आईं। वह एक बार सीबीएसई बोर्ड से 12वीं कक्षा में फेल हो गए, लेकिन उन्होंने यूपी बोर्ड से पुनः प्रयास किया और सफल हुए।2015 में, सूरज अपने भाई के पास मुंबई चले गए, लेकिन आर्थिक समस्याओं के कारण उन्हें वापस मैनपुरी लौटना पड़ा। 2016 में, वे दिल्ली चले गए और नोएडा में एक साल तक काम किया, लेकिन उनका सपना कुछ और था।

रेल दुर्घटना
29 जनवरी 2017 को सूरज का जीवन एक भयानक रेल दुर्घटना से बदल गया। उस दिन, जब वह ट्रेन से यात्रा कर रहे थे, उनका पैर फिसल गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। जब उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्होंने खुद को ICU में पाया। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उन्होंने अपने बाएं हाथ की दो उंगलियाँ, दायाँ हाथ और दोनों पैर खो दिए हैं। यह उनके लिए एक बड़ा सदमा था।उनकी माँ जब ICU में आईं और उनकी हालत देखी, तो वह बेहोश हो गईं। सूरज के लिए वह दिन सबसे कठिन था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
जेएनयू में बिताए दिन
अप्रैल 2017 में, सूरज अपने पिता के साथ एम्स में दवा लेने गए थे, जहाँ उनकी मुलाकात जेएनयू के एक छात्र से हुई। उस छात्र ने उन्हें जेएनयू का कैंपस दिखाया और सूरज के मन में शिक्षा की एक नई उम्मीद जगी। उन्होंने मई में जेएनयू प्रवेश परीक्षा दी, लेकिन असफल रहे।25 मई को, सूरज ने अपने बड़े भाई को खो दिया, जो उनके लिए एक और बड़ा आघात था। इस कठिन समय में, उनके मन में आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित होने लगी। लेकिन सूरज ने हार नहीं मानी। उन्हें पता चला कि जेएनयू जल्द ही फिर से प्रवेश परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। उन्होंने पुनः परीक्षा दी और रूसी विभाग में प्रवेश पा लिया।

आर्थिक कठिनाइयाँ और संघर्ष
जेएनयू में प्रवेश पाने के बाद, सूरज को फीस भरने के लिए पैसे की आवश्यकता थी। उन्हें 4000 रुपये की जरूरत थी, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने अपने दोस्तों से मदद मांगी, लेकिन ज्यादातर ने इनकार कर दिया।फिर अचानक, जेएनयू में एक दोस्त ने बताया कि एक व्यक्ति कुछ वंचित छात्रों के लिए ट्यूशन टीचर की तलाश कर रहा है और वह 4000 रुपये प्रति माह का भुगतान करेगा। यह सूरज के लिए एक वरदान था। उन्होंने ट्यूशन क्लास ली और फीस चुकाई। इस पूरी प्रक्रिया में, सूरज के अंदर अपने जीवन में कुछ करने की निरंतर इच्छा थी।
यूपीएससी की तैयारी और सफलता
सूरज ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और यूपीएससी की तैयारी करने का निर्णय लिया। उन्होंने कठिन परिश्रम किया और अपने सपने को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया।सूरज ने यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल की और एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया कि कैसे उन्होंने अपनी विकलांगता को अपनी सफलता में बाधा नहीं बनने दिया।

साक्षात्कार में अनुभव
एक इंटरव्यू के दौरान, जब एक अधिकारी ने उनसे पूछा कि वह एक स्पेशल कैटेगरी से आते हैं और क्या वह अपनी कैटेगरी के लोगों के लिए कोई योजना बनाना चाहेंगे, तो सूरज ने आत्मविश्वास से जवाब दिया, “सॉरी सर, मैं किसी स्पेशल कैटेगरी से नहीं आता, मैं आप ही की तरह हर काम को करने में सक्षम हूं।”उनका यह जवाब सुनकर पैनल में मौजूद अधिकारियों ने उनकी जमकर तारीफ की। सूरज तिवारी की यह कहानी न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों का उदाहरण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि कठिनाइयाँ केवल अस्थायी होती हैं और सच्ची मेहनत और समर्पण से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
सूरज तिवारी की यात्रा हमें प्रेरित करती है कि हमें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करना चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि अगर मन में दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी बाधा हमें हमारे सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती। सूरज की तरह, हमें भी अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए और कठिनाइयों को अपने विकास का एक हिस्सा मानकर आगे बढ़ना चाहिए।